Tikuli's articles

  रात आईना है इस शहर की बेख्वाब आँखों का शाम ढले जब धुप का आखरी उजाला पेड़ों की टहनियों में सिमट जाता हैं तो ये शहर किसी पेंटिंग की तरह रहस्मयी हो जाता है बची खुची रौशनी लैम्पोस्ट के नीचे सिमट जाती है और समय अँधेरे कोनों या भूले बिसरे हाशियों में छिप जाता […]
आज युहीं पुरानी दिल्ली की उन जानी अनजानी तंग गलियों में लौट जाने का मन हुआ गलियां ऐसी की लखनऊ की भुलभुलैया फीकी पड़ जाये, चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन से उतर हम भी हो लिए लोगों के उमड़ते हुजूम के साथ, नयी दिल्ली का नक्शा चाहे बदल गया हो यहाँ कुछ नहीं बदला नूर से नहायी […]
    बचपन में दिल्ली रिज पे रत्ती बटोरा करते थे कॉलेज में दोस्तों का हाथ थामे किसी टूटी मुंडेर पे बैठे क़ुतुब मीनार को ताकते या आवारगी के आलम में युहीं फिरा करते, कीकर, बबूल,बिलाङ्गड़ा, पिलखन के दरख्तों और जंगली झाड़ियों के बीच हज़ारों बरसों की यादों को सहेजे मेहरौली की संकरी गलियाँ, दरगाह, […]
आज कुछ सायों से मुलाक़ात हुई पुरानी यादें थी साथ हो लीं दरयागंज में गोलचा सिनेमा के पास संडे बुक मार्किट में किताबों के पन्ने पलटते हुए पुराने दिन याद आ गए, भीड़भाड़, किताबों, सिक्को, कपड़ों की छोटी छोटी दुकानों से गुज़रते हुए हम दिल्ली गेट पहुंचे, यहीं सड़क पे जाती एक बस से याद […]
                                                             दिल्ली में बसंत तो हर साल आता है पर इस बार बहुत सालों बाद  हमारे आँगन की अमराई महकी है उसी रंग उसी गंध में […]
  सब्ज़ बुर्ज से कई बार हुमायूँ के मक़बरे तक खामोश रास्तों पर हम कभी कभी युहीं पैदल ही निकल जाते थे निजामुद्दीन की हवा में एक खुमार सा है जिसे लफ़्ज़ों में बयां करना मुश्किल है एक अजीब सी कशिश, एक खुशबू शायद उस नीली नदी की जो कभी पास से गुज़रा करती थी […]

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