TheBlueEyedSon's articles

यही कुछ बारह बरस का है।रोज सुनता है वो‌ स्कूल की घंटियां, बच्चों के कहकहे,ऊंची आवाजों में पाठ,वो सारी प्रार्थनाएं उसको ज़ुबानी याद है।बड़ी हसरत से तकता है वो‌ उस पाठशाला को,जो उसके पास होकर भी कभी जद में नहीं होती,कुछ बाप का डर रोक लेता है उसे घर पे,       कुछ लाचार मां का… […]
हम बहुत रह चुके यारों, शहरों के कारागारों में,बसे भीड़ में, धक्के खाते, खड़े रहे कतारों में!करे घोंसले बहुतेरे, महलो में, परिंदों की भांति थोडी देर जियें गरुडो सा, चट्टानों की दरारों में! उत्तुंग शिखर मुस्काते हैं, जो आनन छूए अंबर का,शिवलहरी को आमंत्रित करता, ये आवास दिगंबर का;चिडियों की… [[ This is a content summary […]
माचिस की तीली सेजब चाहा सुलगायाफूकते रहेहोठों बीच लगाते-हटातेकभी आधी जलायाकभी यूँ ही बुझायाथाम कर ख़्वाहिशेंधुएं संग उड़ाया एक सिगरेट से ज़्यादाकुछ थी ही नहीं जानते थे तुमअच्छी नहीं मैंजमती जाउंगीगहरी काली रेत जैसीफिर भी काली स्याही सेकुछ बनाते रहेकहते  रहे अच्छा है ये कालापन दर्द, दोस्त,… [[ This is a content summary only. Visit […]
उनके लिए जिन्हे गेम ऑफ़ थ्रोन्स या हिंदी कविता से प्यार है. हिम और ज्वाला का गीत, दुष्यंत कुमार के शब्दों में [[ This is a content summary only. Visit my website for full links, other content, and more! ]] Original link
जो पैंन्ट से मैने पर्स निकाला हल्की हुई जेब ने सोचा बाहर निकलूं हवा ही खालूँ साथी ढूँढूँ दुःख सुख गा लूँ पहले तो कुछ लोग मिलेभरी जेबों के पीछे भागते औरों की जेबों को ताकते साथी की जेबों को काटते ज़रा दूर सकुचाई एक जेब मिली चंद सिक्के ही पास बचे थे इसलिए बहुत घबराई […]

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